सेना दिवस (कविता) - जसवीर सिंह हलधर

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सरहद प्रहरी सैनिक कुमार , मेरे उपवन के नव बहार ।

भारत माता के शांति दूत , हे भारत भू के कर्णधार ।।

हे भारत भू के कर्णधार

उत्थान पतन से दूर रहो , ना भौतिक सुख की चाह रखो ।

तुम सैनिक सदा जटिल पथ के , हरदम दुगना उत्साह रखो ।

टिक सके न सम्मुख कोई भी , तुम रण सज्जित हो बार बार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।1।।

ना चिंता कुपित दृष्टि की है ,जो डाल सके तुम पर दुश्मन ।

केवल रण भेरी याद रखो , तोपों के स्वर में सदा मगन ।

सुख मृग तृष्णा से दूर रहो , रक्षण में सारे सुख बिसार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।2।।

ढह जाएं समोनत स्वर्ण भवन ,गौरव सिंघासन राष्ट्र सबल ।

जब दुश्मन का संहार करो ,ढह जाते सम्मुख राष्ट्र प्रबल ।

नभ में रहकर भू को मापो ,तप कर्म तुम्हारा निर्विकार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।3।।

पर्वत की छाती पर चढ़कर , तुम पथ पर बढ़ते जाते हो ।

सागर की लहरों के ऊपर , अविचल साहस दिखलाते हो ।

नदियों की धारा चीर - चीर , करते बाधा को आर -पार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।4।।

तुम्हें नहीं डरा सकता कोई ,कृत्यों से अत्याचारों से ।

तुम्हें नहीं हटा सकता पीछे ,शस्त्रों अस्त्रों के वारों से ।

मानवता के जो दुश्मन हैं ,तुम करते हो उनका शिकार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।5।।

चंडी का खप्पर भरते हो ,शत्रु शोणित की हाला से ।

दुर्गम पथ पर अड़ जाते हो ,राणा के सैनिक झाला से ।

तुम काल बनो आतंकों के ,सुनते हो पीड़ित की पुकार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।6।।

भारत माता की सेवा में , यौवन के सुख का लोभ नही ।

दुर्गम पथ का ना पछतावा ,अपने निर्णय पर क्षोभ नहीं।

तुम भारत भू के गौरव हो ,हलधर"लेखन के सूत्रधार ।

हे भारत भू के कर्णधार ।।7।।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून