अनहोनी (लघुकथा) - रीतूगुलाटी ऋतंभरा

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मेटरोमोनियल से रिश्ता देखा..दोनो परिवारों को पसन्द था। लड़की के जन्मदिन पर लड़के ने अच्छे गिफ्ट दिये। शादी से पहले दोनो अक्सर  मिलते रहते।धूमधाम से शादी हुई,लड़के वालो का बिजनेस था। लड़की मिडिल क्लास थी,  अब नौकरी छोड़ ससुराल आ गयी, शादी के छह माह दोनो हनीमून पर रहे। लेकिन ये क्या..यर्थात की जमी पर पाँव रखा तो अहसास हुआ..कही कुछ गड़बड़ है। शादी के दो साल बीत गये, और संतान सुख नही मिला..इधर ससुराल वाले बच्चा चाहते खुद भी वो चाहती थी..पर..। एक दिन मौका पाकर वो पतिदेव को डाक्टर के पास ले गयी और सुबूत हाथ लगते ही पति से किनारा कर गयी..लड़की के माता- पिता भी इस अनहोनी से क्षुब्ध थे। सारा जीवन कैसे कटेगा..चुपचाप सबसे पहले  लड़की ने नौकरी ढूँढी और साथ ही तलाक का संदेश भेज दिया..। नपुंसकता के चलते उसे तलाक आसानी से मिल गया। मगर इस अनहोनी से दोनो परिवार बिखर गये..लड़के के पिता ने हाथ जोड़े बेटी, तलाक मत लो..मैं इसका इलाज कराऊँगा पर बहू ने साफ कह दिया..पापा, एक नपुंसक के साथ रहने की बजाय मैं तलाकशुदा कहलाना पसन्द करूँगी...इधर लड़का अपना सिर पीट कर रह गया..इतने धूमधाम से हुई शादी का ये हश्र..। काश..इस अनहोनी का उन्हे पहले पता होता ?

- रीतूगुलाटी ऋतंभरा, हिसार,  हरियाणा