श्री राम यज्ञ - (61वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
जय सिंह वाहिनी माता की ।
जगदम्बा की जग त्राता की ।।
राजीव नयन मुरझे-मुरझे ।
कर रहे चयन उलझे उलझे ।।1
मन से व्याकुल रीते-रीते ।
अब टेर रहे सीते-सीते ।।
तू कहाँ खो गयी बैदेही ।
क्यों रुष्ट हो गयी बैदेही ।।2
अब देह राम निष्काम हुई ।
अब स्वास-स्वास संग्राम हुई ।।
पश्चिम की ओर ढला सूरज ।
सरयू की ओर चला सूरज ।।3
राघव को भांप रही सरयू ।
कदमों को नाप रही सरयू ।।
निर्णय से कांप रही सरयू ।
बहती चुपचाप रही सरयू ।।4
क्यों छोड़ छाड़ सारा वैभव ।
पैदल चलते हैं क्यों राघव ।।
यह सोच रही बहती-बहती ।
सरयू रोयी कहती-कहती ।।5
अब राम हिया किससे खोले ।
अब गांठ जिया किससे खोले ।।
अपना दुख दर्द कहाँ तोलें ।
बोलें भी तो किससे बोलें ।।6
सब भरत शत्रुघन छूट गए ।
सीता औ लक्ष्मण छूट गए ।।
धागे जगती के टूट रहे ।
बंधन धरती के टूट रहे ।।7
यह मौन धैर्य कब तक पहनूँ ।
यह मुकुट शौर्य कब तक पहनूँ ।।
भीतर-भीतर गूँजा यह स्वर ।
अब जाना धरती से सत्वर ।।8
सरयू का संशय और बढ़ा ।
छप से राघव का पैर पड़ा ।।
घबराकर सिमट गयी सरयू ।
चरणों से लिपट गयी सरयू ।।9
रो रही वाटिका सी लहरें ।
जल रही त्राटिका में नहरें ।।
सरयू हटकर पीछे भागे ।
राघव बढ़ते आगे आगे ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून