श्री राम यज्ञ - (59वीं समिधा)  - जसवीर सिंह हलधर 

 

हे शब्द समीक्षा की देवी ।

हे काव्य परीक्षा की देवी ।।

वाणी में वास करो माता ।

यश ज्ञान प्रकाश भरो माता ।।1

अंतिम अध्याय कहानी का ।

कल्पित पर्याय कहानी का ।।

विधिना ने फिर डाला डेरा ।

राघव को संशय ने घेरा ।।2

कुछ लोगों ने यह खेल रचा ।

आरोप किसी को नहीं पचा ।।

आरोप लगे माँ सीता पर ।

धरती की परम पुनिता पर ।।3

राघव मन भांप गयी सीता ।

क्रोधित हो कांप गयी सीता ।।

धरती में समा गयी सीता ।

राघव का घट फिर से रीता ।।4

धरती में धरती की बेटी ।

नारायण मुट्ठी में रेती ।।

सुख चैन राम से दूर हुआ ।

हृदय भी चकनाचूर हुआ ।।5

सीता को बचा नहीं पाये ।

घटना को पचा नहीं पाये ।।

अंतस में खोज रहे कारण ।

स्तब्ध रह गए नारायण ।।6

हाथों से फिसल गयी सीता ।

जगती से निकल गयी सीता ।।

राघव को नियति चिढ़ाती है ।

सीता की याद सताती है ।।7

आशक्ति समाहित सीता में ।

अनुरक्ति समाहित सीता में ।।

तेरे बिन राम सदा रीता ।

सीता सीता सीता सीता ।।8

जीवन का मोह हरें राघव ।

खुद से विद्रोह करें राघव ।।

अब मुझको भी जाना होगा ।

सीता को फिर पाना होगा ।।9

कुछ दिन उधार की माया थी ।

धरती पर लक्ष्मी छाया थी ।।

नारायण समझ गए घटना ।

मुझको भी धरती से हटना ।।10

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून