श्री राम यज्ञ - (54वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
श्री राम प्रतीक्षा पूर्ण हुई ।
श्री राम परीक्षा पूर्ण हुई ।।
दुर्गा की दीक्षा पूर्ण हुई ।
हरि यज्ञ समीक्षा पूर्ण हुई ।।1
वरदान दे दिया अम्बा ने ।
सम्मान दिया जगदम्बा ने ।।
यह देकर गुप्त हुई दुर्गा ।
आँखों से लुप्त हुई दुर्गा ।।2
उठ गए राम छोड़ा आसन ।
हिल गया दैत्य का सिंघासन ।।
दोबारा युद्ध हुआ भीषण ।
शस्त्रों में जारी संघर्षण ।।3
कौदण्ड छोड़ता जब आयुध ।
खलनायक खोता है सुधबुध ।।
नव शक्ति समाहित राघव में ।
नव भक्ति प्रवाहित राघव में ।।4
दोनों के बाण भिड़ें क्षण क्षण ।
लंका का कांप रहा जन गण ।।
ज्यों शर निकलें धनु से सर सर ।
हिलते रावण दस दस सर ।।5
रावण ने सच को जान लिया ।
नारायण को पहचान लिया ।।
फिर भी खल हार नहीं माने ।
रघुनंदन को मारे ताने ।।6
नौ दिन तक युद्ध चला रण में ।
रावण ने खूब छला रण में ।।
चर्चा है अब भूमंडल में ।
है भेद गुप्त रावण खल में ।।7
नौंवे दिन युद्ध विराम हुआ ।
पर जीत नहीं परिणाम हुआ ।।
कर भेद विमर्श विभीषण से ।
जाना निष्कर्ष विभीषण से ।।8
घायल भी लड़ता उछल उछल ।
कैसे मारा जाए यह खल ।।
तब राज विभीषण ने खोला ।
शोकित शंकित हरि से बोला ।।9
है नाभि केंद्र में सोम सुधा ।
इसकी देही मानो वसुधा ।।
पीयूष सुखा दो नारायण ।
प्रत्यूष दिखा दो नारायण ।।10
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून