श्री राम यज्ञ - (49वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
जय शब्द साधना की देवी।
जय छंद वंदना की देवी ।।
अब युद्ध कथा ने मोड़ लिया ।
राघव के मन को तोड़ दिया ।।1
संहार देख नारायण ने ।
राघव कर्तव्य परायण ने ।।
कुछ दिन का युद्ध विराम लिया ।
लक्ष्मण को अपना काम दिया ।।2
लाशों से पटी हुई भू है ।
प्रांगण से आती बदबू है ।।
सुग्रीव वीर भी घायल हैं ।
रावण कौशल के कायल हैं ।।3
कुछ सोच रहे अब नारायण ।
अवसाद ग्रस्त होते इस क्षण ।।
शिव शक्ति समाहित अभिमानी ।
शिव भक्ति प्रवाहित अभिमानी ।।4
हरि जामवंत ने समझाये ।
अतिशीघ्र राम क्यों घबराये ।।
शंकर का जाप करो रघुवर ।
अपने संताप हरो रघुवर ।।5
हरि परामर्श तो मान गए ।
मुद्दे का हल पहचान गए ।।
चिंतन जागृत पीताम्बर में ।
रवि अस्त हुआ अब अम्बर में ।।6
अंधकार की रात अमावस ।
राम नयन में उतरी पावस ।।
स्वेत शिला बैठे रघुराई ।
साथ विभीषण और गुसांई ।।7
बैठे सब आज्ञा को तत्पर ।
लंक विजय की खातिर सत्वर ।।
आगे ध्यान मग्न है भूधर ।
पीछे गरज रहा है सागर ।।8
राघव दीख रहे संशय में ।
रावण वध के दृढ़ निश्चय में ।।
ध्यान पहुँच जाता है रण में ।
दिखता है रावण प्रांगण में ।।9
अट्टहास करता खल निर्भय ।
अस्त्र हुए निष्फल ज्योतिर्मय ।।
राघव मुख पर भाव विकल हैं ।
आँखों में आँसू छल छल हैं ।।10
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून