श्री राम यज्ञ - (36वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
कविता प्रबंध दे दो मैया ।
कुछ रौद्र छंद दे दो मैया ।।
मैं राम कथानक लिखता हूँ ।
अब युद्ध भयानक लिखता हूँ ।।1
मेघों सा गरज रहा दानव ।
लक्ष्मण को मान रहा मानव ।।
वानर रण में ललकार रहे ।
द्राविड़ सेना को मार रहे ।।2
तूफान उठा है बाणों का ।
संकट है सबको प्राणों का ।।
बाणों से बाण निकलते हैं ।
खलदल के प्राण निगलते हैं ।।3
दावानल बरस रही रण में ।
शोणित बहता समरांगण में ।।
अब मेघनाद घबराया है ।
वो शस्त्र अनौखा लाया है ।।4
अब मेघनाद ने रुख मोड़ा ।
सेना पर नाग पाश छोड़ा ।।
नागों के बंधन में सेना ।
खल के अनुबंधन में सेना ।।5
हनुमत ने यह पहचान लिया ।
तब गरुड़ देव आह्वान किया ।।
रक्षा में देव गरुड़ आये ।
ये देख नाग अब घबराये ।।6
नागों से मुक्त किया दल को ।
नाकाम किया खल के छल को ।।
वानर सेना फिर से जागी ।
लड़ने को दोबारा भागी ।।7
संग्राम हुआ फिर से भारी ।
समरांगण में मारा मारी ।।
क्या भीषण युद्ध नजारा है ।
लक्ष्मण ने फिर ललकारा है ।।8
प्रत्यंच खींच टंकार किया ।
खल सेना का संहार किया ।।
बाणों का जाल बिछा डाला ।
प्राणों पर काल बिठा डाला ।।9
अब मेंघनाद ने चाल चली ।
वह रूप बदलने लगा छली ।।
अब इंद्रजीत दिखता बंदर ।
घुस आया सेना के अंदर ।।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून (उत्तराखंड)