श्री राम यज्ञ - (33वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
माँ सरस्वती का अभिनंदन ।
माँ वाघवती का अभिनंदन ।।
है राम कथानक का वंदन ।
स्वीकार करो टीका चंदन ।।1
अब कथा युद्ध की जारी है ।
अब कुंभकरण की बारी है ।।
इतना भीषण संग्राम हुआ ।
वानर दल में कुहराम हुआ ।।2
दिखलाता भांति भांति के छल ।
सेना को मार रहा है खल ।।
हनुमत के साथ खड़े हैं नल ।
पीछे है जामवंत का दल ।।3
जब गदा घूमती हनुमत की ।
तब देह कांपती खलपत की ।।
वानर सेना का देख क्षरण ।
निर्णय का लो आ गया चरण ।।4
जब लड़ने आये नारायण ।
अब जान गया है कुंभकरण ।।
आया है उसका अंत चरण ।
जाना ही होगा राम शरण ।।5
हरि ने स्वरूप विस्तार किया ।
कौदण्ड उठा टंकार किया ।।
हरि ने जब प्रत्यंचा खींची ।
हो गयी धरा दो गज नीची ।।6
अपने पुरखों का ध्यान किया ।
रण चंडी का आह्वान किया ।।
कर सावधान ज्यों वार किया ।
वाणों से बांध तैयार किया ।।7
खल सेना का पथ रोक दिया ।
खलनायक का रथ रोक दिया ।।
निकले लाखों सर सर सर सर ।
खल सेना का काटें सर सर ।।8
पट गयी धरा अब लाशों से ।
राक्षस कुल के बदमाशों से ।।
अधिनायक सैनिक छांट दिए ।
भुजदंड कुंभ के काट दिए ।।9
अब शीश कुंभ का काट दिया ।
जीवन रस उसका चाट दिया ।।
कौदण्ड वाण जगदीश उड़ा ।
ले कुंभकरण का शीश उड़ा ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून