श्री राम कथा (दसवीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
मात शारदा का अभिनंदन ।
मन में समा गए रघुनंदन ।।
कथा सरल है नारायण की ।
सहज युक्ति है पारायण की ।।1
नाक कटी नकटी चिल्लाई ।
दौड़ी खर-दूषण पर आई ।।
खर दूषण रावण के भाई ।
सेना सारी तुरत बुलाई ।।2
सैनिक चौदह सहस्र बुलाये ।
खर दूषण लड़ने को आये ।।
दोनो को अनुमान नहीं था ।
राम शक्ति का भान नहीं था ।।3
मारिच का संज्ञान नहीं था ।
मरण सुबाहू ध्यान नहीं था ।।
युद्ध किया दोनो ने भारी ।
लखन वाण छोड़ें चिंगारी ।।4
लेकिन लखन जीत ना पावें ।
तरह तरह के वाण चलावें ।।
बलशाली हैं राम हमारे ।
एक वाण से दोनों मारे ।।5
सेना मुर्क्षित पड़ी किनारे ।
सब सैनिक भागे बेचारे ।।
समाचार रावण को आया ।
खर दूषण का शोक जताया ।।6
राज सभा सन्नाटा छाया ।
रावण जोर जोर चिल्लाया ।।
किसने मारे खर औ दूषण ।
दोनो राक्षस कुल आभूषण ।।7
ऐसा कौन धरा पर योद्धा ।
नर है या नारायण पौधा ।।
सोच सोच रावण घबराया ।
मामा मारिच तुरत बुलाया ।।8
मारिच ने यह युक्ति सुझाई ।
छल प्रपंच प्रयुक्ति बताई ।।
सोना सारंग भेष बनाया ।
सीता जी के मन को भाया ।।9
देखी कुटिल हिरण चतुराई ।
सीता की नीयत ललचाई ।।
नाथ मुझे यह मृग अति भाया ।
नारायण बोले यह माया ।।10
- जसवीर सिंह हलधर,देहरादून