बिखरते सपने = कालिका प्रसाद
अधूरे मिलन की अधूरी कहानी।
मुझे छल रही है मगर जी रहा हूँ।।
न जाने ये कैसा जहर पी रहा हूँ।
लिखूँ गीत कैसे प्रणय जब अधूरा।।
पढूँ गीत कैसे मिलन जब न पूरा।
यहाँ पर पिपासित पड़ी जिन्दगानी।।
कहाँ तक लिखूँ मैं अधूरी कहानी।
यही बात होगी कि तुम बोल दोगी।।
पड़ेगी कहीं जिन्दगी जब अधोगी।
बिखरते सपन हैं बिखरती जवानी।।
न तुम जानती हो न मैं जानता हूँ।
न तुम मानती हो न मैं मानता हूँ।।
जरा देखना है कहाँ गीत ढलते।
जरा लेखना है कहाँ दीप जलते।।
प्रणय की शिखा पर नयन को जलाऊँ।
तुम्हें गीत गाकर कहाँ तक भूलाऊँ।।
विवश सोचता हूँ विवश रो रहा हूँ।
विवश जिन्दगानी प्रिये ढो रहा हूँ।।
मिटी जा रही है हृदय की रवानी।
नहीं रुक रहा है आँखों से पानी।।
तुम्हें कह रहा हूँ जरा पास आओ।
मिलन की लगन में प्रिये, मुस्कराओ।।
न हम रह सकेंगे न तुम मिल सकोगी।
प्रणय की भिखारिन, कहाँ तक भगोगी।
प्रिये , आज मिलना असम्भव बना है।
बिछुड़ना बहुत प्राण, सम्भव बना है।।
दु:खों की कहानी न तुम जानती हो।
निठुर हो कहाँ तक सताती रहोगी।।
कहाँ आज मेरी ये जीवन निशानी।
तुम्हें याद करके जला जा रहा हूँ।।
= कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार, रुद्रप्रयाग उत्तराखंड