साँसे - जया भराडे बडोदकर
Sep 20, 2021, 23:09 IST
चल रही थी तब भी
और अब भी चल रही है,
कभी तेज हो जाती हैं
हवाओ को सहते हुए,
कभी भावनाओ मै
मंद-मंद चलने लगती हैं,
संकट से डर कर कभी ये
दुविधाओ मे फँस कर
बहक जाती हैं कभी,
खुली हुई साँसे मेरी
नसीब में है ही नहीं,
कभी-कभी महकती
हुई और बलखाती चलती थी,
जब पिंजरे में
बंद थी मुलाकाते सपनो की,
अब सब सामने खुल गया है,
राज जिंदगी का,
जो सच लगता था वही
घटनाओ मे बदल गया है,
जीवन है सांसों का एक
प्यारा सा बंधन,
कभी-कभी ये ही,
दे जाता हैं बड़ी घुटन,
शेष है साँसे मेरी
इंतजार करती हैं,
जहाँ हो कही खुला चमन
सुकून मिले शाम को ,
और खुशी से भरा हो मन
खुला आसमां और सुलझी
हुई राहें मुस्कानों से भरी हुईं,
साँसे चलती रहे,
जीवन का सुख और दुःख सहते हुए,
- जया भराडे बडोदकर,नवी मुंबई (महाराष्ट्र)