हाथ की लकीर - पूनम शर्मा
वो फकीर
जब बाँट रहा था
सबकी तकदीर में
दुआओं की लकीरें
मेरा हाथ जो देखा तो बोला-
अरी.. कमबख्त !!
तेरे हाथ की तो हर लकीर अधूरी है।
मैनें खींच लिया था अपना हाथ
थोड़ी सकपकाई और कहा-
बाबा ये अधूरी लकीरें ही
मेरी जिंदगी की कमाई होंगी
मेरे हिस्से ये बड़ी किस्मत से आई होंगी।।
क्या आप नहीं जानते ?
ये अधूरी लकीरें तो प्रतीक हैं,
राधा कृष्ण के प्रेम की ,
जिसकी आज भी दुनियाँ दीवानी है।
वो जो बनेगा दीवाना मेरा,
मैं उसकी दीवानी बनूंगी
बिछड़ के उससे प्रेम की
नई निशानी बनूंगी.../
उनको बोल के दिल समझा लिया,
लेकिन मन की उलझनों ने भी,
कहाँ फिर चैन लेने दिया ....
मैंनें मुखातिब किया आसमाँ को
अपने हाथ की लकीरों से तो,
महसूस हुआ कि उस रहनुमा ने,
अपना हाथ मेरे हाथ से मिलाया है,
और मैनें अपने आप से कहा ----
झूठ बोलता है वो फ़क़ीर
क्योकि औझल होती हुई
उस अहसास की हकीकत ने
जब मेरी नजर से नजर मिलाई
सच !
उसके बाद फिर मुझे
मेरी लकीरों पे गुमाँ हो गया,,,,,
- पूनम शर्मा,पानीपत, हरियाणा