ग़ज़ल - विनोद निराश
Jan 6, 2022, 22:16 IST
बात दिल की उन्हें सुनाते रहे,
हम भी अख़लाक़ से जाते रहे।
इश्क़ का सफर तो मुश्किल था,
राहे-इश्क़ में धमाल मचाते रहे।
जब बात चली हिज़्रे-यार की,
बेखुदी में ख्वाब सजाते रहे।
न हुए कभी भी उनसे बेखबर,
खुद को हमसे जो बचाते रहे।
उस लहजे की रवानी बाखुदा,
कदम-दर-कदम गिनाते रहे।
दफ़अतन तेरा दिल से जाना,
खुद रोये औरों को हँसाते रहे।
तमाम रात तुझे याद कर-कर,
ख्वाब तेरे निराश सजाते रहे।
- विनोद निराश , देहरादून