जिंदगी कैसे गुजारें सोंच लो।
लोग करते हैं इशारे सोंच लो।
आजमा के देख तेरा कौन है।
जी रहे किसके सहारे सोंच लो।
साँस तेरी है हवा का बुलबुला।
ना धुआं ना धूंध प्यारे सोंच लो।
भोर की लाली बढ़ाती हौसला।
रात दिन जीवन गुजारे सोंच लो।
आदमी उलझा हुआ जंजाल में।
बदनसीबी में पुकारे सोंच लो।
मौत ह़ी मंजिल सबों की जान लो,
कौन मरना चाहता रे सोंच लो।
चंद पलका है बसेरा 'अनि' जहां,
बुलबुला देखो उड़ारे सोंच लो।
= अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड