गंगा के तीर = प्रीति आनंद
May 22, 2021, 23:10 IST
कैसा है ये नज़ारा गंगा के तीर ,
जल नहीं गंगा का बह रहा नीर I
दूर-दूर तक बिखरी बेकफ़न लाशें ,
जिन्हें देख हलक में अटक जाए साँसे I
वो तन-बदन के बिखरे बेहिसाब टुकड़े ,
जिनमें कई माँ-बाप,भाई-बहन के मुखड़े I
नोचते खींचते जिन्हें गिद्ध और श्वान,
कहाँ छुपे बैठे वो जो बनते जनता के भगवान?
आज माँ गंगा भी कह रही ये पुकार,
सुन ना सकूंगी अब मैं आत्माओं की चीत्कार I
बेबसी में लोगों ने जो दर्द का घूंट पिया,
क्या सफेदपोशों ने उसे एक पल को जीया ?
= प्रीति आनंद , इंदौर (मध्य प्रदेश)