अर्थव्यवस्था और दीपावली - रूपल उपाध्याय

 

Vivratidarpan.com - पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस से भैयादूज  तक मनाए जाने वाला पांच दिवसीय पर्व होता हैं, दीपावली । सबसे पहले धनतेरस के दिन घर के मुखिया द्वारा कुबेर भगवान की पूजा की जाती है और पांच से सात दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं । उसके अगले दिन काली चौदस जिसको रूप चौदस भी कहा जाता है उस दिन सवेरे घर की स्त्रियां उबटन और चंदन से स्नान करती हैं और शाम को घर के मुख्य द्वार पर आटे की लोई से बनाए दो दीपक सरसो तेल के लगाए जाते हैं । ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से यम देवता उस घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु का शिकार नहीं बनाते । फिर अगले दिन सबसे पहले सवेरे हनुमान जी की पूजा की जाती है और शाम से दीप दीपावली की तैयारी शुरू हो जाती हैं ।

मिट्टी के सुंदर दीपो में तेल या घी भर कर बाती लगायी जाती हैं । बिजली की सुंदर लड़ियों से पूरे घर को सजाया जाता है। उसके बाद माँ लक्ष्मी की उपासना, लक्ष्मी की अपेक्षा हेतु प्रेम और श्रद्धा से की जाती है। अब जैसा कि साधारण जन को पता है अगर हमें पता हो कि हमारे घर में निश्चित समय में कोई आगंतुक आने वाला है तो है हम उसकी रुचि अनुसार और अपने सामर्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसके स्वागत की तैयारी करते हैं। बस उसी प्रकार साल में एक बार माँ लक्ष्मी के स्वागत में हम कोई कमी नहीं करते। सदियों से इस त्यौहार पर लोग दीप प्रज्वलित करते हैं घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। घर के बुजुर्ग बच्चों को उपहार एवं पैसे देते हैं। इस पर्व की खूबी यह है कि इसके बारे में सोचने से ही यह मन मयूर सा नाचने लगता है।

दीपों की रोशनी से काली अमावस की रात भी जगमगाने लगती हैं। हमारी प्रकृति हमारे त्यौहार हमारी मान्यताएं और रीति रिवाजों के माध्यम से कितना सुंदर संदेश देती है कि अगर मन में चाहत हो और दिल में लगन हो तो हमारे सकारात्मक विचारों से जीवन में आए अंधकार को हम पूर्णतया उजाले में परिवर्तित कर सकते हैं ।

अन्य हिन्दू त्यौहारों को लेकर चाहे दूसरे धर्म में जो भी  मान्यता हो परंतु सभी धर्म दीपावली की चकाचौंध और लक्ष्मी पूजन के महत्व से खुद को दूर नहीं रख पाते। भारत में सभी राज्यों में इस पर्व को सभी वर्गो के लोग धूमधाम से मनाते हैं।

एक ओर जहां सभी धर्म के लोग दीपावली पर लक्ष्मी पूजन को महत्व देते हैं वहीं दूसरी ओर जैन धर्म में कार्तिक अमावस्या को निर्वाण महोत्सव के रूप में मनाया जाता हैं।

कार्तिक अमावस्या को स्वाति नक्षत्र में बिहार के पावापुरी क्षेत्र में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। जैन समुदाय धन, वैभव,यश के बजाए वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर जोर देता है। दीपावली वाले दिन भगवान को लड्डू का भोग लगाया जाता है। भगवान महावीर का अंतिम संस्कार इन्द्र देवता ने किया था ऐसा माना जाता है ।

राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में एक खास प्रथा देखने को मिलती है जो मुझे अन्य कहीं देखने को नहीं मिली । वहां छोटी दीपावली को लोग सज धज कर बाज़ार में रोशनी से हुई सजावट देखने जाते हैं। मजेदार बात ये हैं कि लोग हजारों रुपए खर्च कर कर सजावट करते हैं। बाज़ार में हुई सजावट को फिर व्यापारिक मंडल द्वारा सम्मानित भी किया जाता है। सजावट के मुताबिक प्रथम द्वितीय पुरस्कार भी दिए जाते हैं ।

गुजरात में इस पर्व कि तैयारी अलग अंदाज में होती है। सभी लोग अपने घर का सारा कबाड़ जूते ,चप्पल, झाड़ू मटका, नारियल चौराहे पर ले जाकर रख देते हैं। जाने कौन सी अला बला हटाने हेतु , मेरा उत्सुक मन सोचने को मजबूर हो जाता है कि इस महंगाई के दौर में 15 से 20 रुपए का नारियल यूं ही सड़क पर फेंक दिया जाता है। सोचकर हैरानी होती है कि जाने कैसी किस्मत है इस अभागे की,  कि  ना तो यह किसी का स्वाद ही बन पाया, ना ही किसी का पेट भर पाया और ना ही ईश्वर के चरणों में स्थान बना पाया।

आप यकीन नहीं करेंगे प्रत्येक चौराहे पर 100 से 150 नारियल यूं ही बिखरे पड़े होते हैं । गुजरात में एक विशेष बात देखी दीपावली के दिन गुजराती पुराने कपड़ों में रहते हैं और रात 12:00 बजे बाद सड़कों पर सफाई शुरू हो जाती है। दीपावली के अगले दिन यह नूतन वर्ष मनाते हैं और सब लोग एक दूसरे के घर जाते हैं, बधाइयां देते हैं  एक-दूसरे को उपहार देते हैं। फिर यह इस पर्व को 5 दिन तक मनाते हैं जो लाभ पांचम के नाम से प्रख्यात है। भाई दूज के अगले दिन घूमने चले जाते हैं। मजेदार बात यह है कि हमारे जैसे बाहरी लोग फिर केवल घर के ही होकर रह जाते हैं क्योंकि पूरे बाजार में सन्नाटा होता है कोई रेस्टोरेंट कोई दुकान कुछ नहीं खुला होता। यहां तक की सब्जी दूध भी हमें एक्स्ट्रा रखना होता है।

कर्नाटक में चौराहे पर काशीफल (पंपकिन) बोलते हो और पांच नींबू में रोली भरकर सड़क पर या चौराहे पर फेंक दिया जाता है वो भी हजारों की तादाद में। दीपावली के दिन यह लोग कलयुग के अवतार तिरुपति बालाजी की पत्नी मां पद्मावती का पूजन करते हैं और लक्ष्मी का प्रेम पूर्वक अपने घर में स्वागत करते हैं।

दीपावली महिलाओं की नजर से -

नवरात्रि के रास गरबा की थकान अभी उतरी भी नहीं होती कि दीपावली से पहले होने वाली सफाई का सोच कर ही चक्कर आने लगते हैं । साल भर में लिए गए कपड़े ,बर्तन अब घर में बिखर-बिखर कर मुंह चिढ़ाने लगते हैं। पूरे साल कपड़ों के लिए रोने वाली महिलाओं को लगने लगता है इन कपड़ों का आखिर करें क्या ? रसोई की सफाई तो किसी सीमा पर हो रही जंग से कम नहीं होती। ऐसा लगता है मानो हमारे पड़ोसी का सामान भी कहीं गलती से हमारे घर तो नहीं आ गया। धनतेरस तक सफाई थमती हैं। तब जाकर कहीं घर चमकने लगता है। अब घर का हर कोना पर्दे, चद्दर ,सोफा महिलाओं को चिढ़ाने लगते हैं। तब याद आती है पार्लर की खुद को संवारने फिर वहां का रास्ता पकड़ती हैं। सज धज कर घर आती हैं तो सोचती हैं की पति और बच्चो की  तारीफ का पात्र बनूंगी।  पर हाथ आती है फरमाइश गुजिया, मोहनथाल ,बालूशाही, मठरी, रसगुल्ले तो आपने बनाया ही नहीं। तो दीपावली मतलब, "बेटा चढ जा सूली पर "तारीफों के चंद लफ़्ज़ से ज्यादा परिवार की खुशी और लक्ष्मी  के स्वागत के लिए अपनी पाक कला का गुण दिखाने लग जाती है।

दीपावली पुरुषों की नजर से -

व्यापारी वर्ग के लिए अहम सोचने का विषय होता है कि गला काट स्पर्धा में अपने ग्राहकों को कितना आकर्षक प्रलोभन दिया जाए, जिससे कि उसकी आमदनी में लागत से तिगुना नफा आए। दुकान को सजाना सह कर्मियों को बोनस देना इन्हीं उठा पटक में लगा रहता है। नौकरी पेशा वाला पगार और बोनस के जोड़ घटा में ही चिंतित रहता है, उसे हर बार यही लगता है कि दीपावली इतनी जल्दी क्यों आ गई। चाहे अपने लिए एक रुमाल ना ले पर अपनी पत्नी और बच्चों को अवश्य कुछ ना कुछ जरूर दिलाता है ।

दीपावली बच्चों की नजर से -

फुलझड़ी पटाखे और मिठाईयां बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। नए कपड़े पहन कर दोस्तों को दिखाना, अरे भाई अब तो सोशल मीडिया का जमाना है तैयार होने से पहले ही इंस्टाग्राम पर स्टेटस अपडेट हो जाता है।

दीपावली और बाजार -

बाजारों में अच्छी खासी हलचल नजर आती है । सभी दुकानदार दीपावली की तैयारी जोर शोर से करते हैं । इस दौरान मिलने वाली मिठाइयों में मिलावट का सबसे ज्यादा डर होता है। खरा नफा पाने की लालसा में दुकानदार आम जनता की सेहत से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकता। हलवाई से प्रेरित होकर सुनहार कौन सा कम पड़ता हैं दीपावली के दौरान मिलने वाली चांदी में सबसे ज्यादा मिलावट का खतरा होता है।जेवर की तो बात ही छोड़ दो लोग तो ईश्वर को भी  नहीं बख्शते दीपावली के दौरान बिकने वाले लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां में सबसे ज्यादा मिलावट होने की आकांक्षा रहती हैं इसके पीछे मूल सोच ये हैं की कोई साधारण मनुष्य भी ईश्वर की मूर्ति को बेचता नहीं है तो उसकी प्रामाणिकता पर किसी का संदेह नहीं हो पाता। ।

दीपावली और अर्थव्यवस्था -

भारतीय त्यौहारों की विशेषता होती है कि प्रत्येक त्यौहार की अपनी अलग रौनक होती है। हर विशेष पर्व पर होने वाले खर्चे और धूमधाम समाज के हर वर्ग को रोज़गार दिलाते हैं। इस कारण समाज के हर वर्ग की आमदनी बढ़ती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में दीपावली के अवसर पर सेंसेक्स उछल जाता है लगभग सभी इकाइयों के शेयर्स के भाव बहुत ऊंचे हो जाते हैं ।

- रूपल उपाध्याय, बडौदा, गुजरात, #7043403803