निरखकर डूबता सूरज - डॉ अंजु लता सिंह
Jan 7, 2022, 22:43 IST
निरखकर डूबता सूरज-
मेरा मन कुलबुलाता है,
कृषक हो ज्यों कोई कृषकाय-
अलविदा कहता जाता है।
सबके बाबा कहाते हैं-
सफर तय कर रहे नया.
शाम होने लगी है अब-
जिंदगी की,करें अब क्या?
निपट निर्जन राहें लंबी-
बीहड़ों से निकलती हैं,
घिसी जूती हैं कदमों में-
निकलने को मचलती है।
भाग्य का खेल है सब रे!
जूझने का है यह प्रतिफल,
टिकाए बेंत वसुधा पर-
खिलाता जा रहा शतदल।
- डॉ अंजु लता सिंह, नई दिल्ली