काम करीं - अनिरुद्ध कुमार
May 6, 2024, 23:12 IST
जिनगी ई सुखदुख के खेला,खेलीं पारी ध्यान से,
काहे बिचलित बानी साथी, जीलीं एके शान से।
जीवन पइनी बड़ी भाग्य से, दमके मुख मुस्कान से,
बचपन यौवन और बुढ़ापा, जीहीं बन मस्तान से।
पगपग पर बा रोज झमेला, लोहा ली जीजान से,
ज्ञान बढ़ाई नाम कमाई, जग पूछी अभिमान से।
प्रेमभाव हर मन में जागी, छलकी प्रीत जुबान से,
कामें परिचय जानी मानी, व्यर्थ रहल अंजान से।
इल्म रही नित बढ़ी कमाई, शोहरत बढ़ी मान से,
आपन या बेगाना कोई, इज्ज़त दी पहचान से।
कामधाम से बढ़के काबा, समय कटी सुखशान से,
गाँव नगर मस्ती में झूमी, रसरंजित सुरतान से।
मेहनत ह जीवन के धूरी, अरज इहे भगवान से,
हुनर समाहित होखे जीवन, मानदान परधान से।
हर जीवन के एक किनारा, दूरी रखीं अज्ञान से।
कामधाम जीवन के कूंजी, काम करीं दिलजान से।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड