आँखें मींचे दे रहे क्यों ? - अनुराधा पाण्डेय

 

आँखें मींचे दे रहे क्यों,

प्रीत का अवदान मुझको ?

चल रहे हो प्रेम पथ पर ,

क्या समझकर प्राण पन से ?

क्यों तुझे रुचिकर न लगता ,

और कुछ भी प्रेम धन से ?

मूल क्या है इस लगन का...

कुछ नहीं अनुमान मुझको।

प्रीत का अवदान मुझको?

एक टक बस देखते हो ,

शब्द बिन कुछ भी उचारे ।

सार क्या है इस जलन में,

जल रहे क्यों बिन विचारे ?

लग रहा ज्यों कर रहे हो ...

मौन शर संधान मुझको ।

प्रीत का अवदान मुझको?

स्वार्थ मय इस जड़ जगत में,

रीत ऐसी तो न देखी ।

लग रहा मुझको अलौकिक,

प्रीत ऐसी तो न देखी ।

दृश्य जग में लग रहा तू...

नेह का प्रतिमान मुझको ।

प्रीत का अवदान मुझको?

मोक्ष भी अब तो न माँगू,

मुक्ति कबके पा गई मैं ।

पा गई अपवर्ग तुझसे,

धन्य ! तुझको भा गई मैं ।

कर समाहित सद्य निज को

मानते भगवान मुझको ।

प्रीत का अवदान मुझको?

- अनुराधा पाण्डेय , द्वारिका , दिल्ली