वीरगति सीमा पर स्वीकार नहीं - हरी राम यादव

 

नित नित नए दांव आजमा रहा,

    निर्लज्ज पड़ोसी पाकिस्तान।

सरहद के सूबे में कर उत्पात,

    ले रहा हमारे सैनिक की जान।

क्या हम बने रहेंगे बात बीर,

    सहलाते रहेंगे अपने कान ।

कब तोडेगे हम विष दांतों को ,

    चढ़ा गांडीव पर प्रलय बाण ।।

अब और वीरगति सैनिक की,

   मां भारती हमें स्वीकार नहीं।

शव से लिपट बिलखती बहिनों की,

     सुन सकता करुण पुकार नहीं ।

पापा के ऊपर फूल चढ़ाते बच्चे,

     कर सकता और दीदार नहीं ।

ग़म गुस्से में उबल रहा है देश,

     अब और करो इंतजार नहीं।।

कब तक घूम घूम कर बोलोगे,

    अपने मन की पीड़ा और दर्द।

जिसके पैर में न फटी बिंवाई,

    वह क्या जाने पछुआ हवा सर्द।

अपना हाथ ही है जगन्नाथ,

     खुद ही बनना होगा हमें मर्द ।

बजा दुंदुभी खोल दो मोर्चा,

     दुष्ट के मोर्चे पर उड़ा दो गर्द।।

- हरी राम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश