ताई (लघु कथा) - जया भराडे बडोदकर

 

vivratidarpan.com - रमा अक्सर ही हनुमान मंदिर चली जाती थी और वह एक ही प्रार्थना करती थी कि इस  दुनिया में कोई भी दुखी न रहे,। उस मंदिर में एक औरल हमेशा नजर आती थी। सभी उसे ताई पुकारा करते। कभी उसके पैरों में चप्पल नजर नहीं आती थी। एक दिन रमा ने उसे एक जोड़ी चप्पल लाकर दे दी और कहा ताई सारे दिन यहाँ मंदिर में काम करतीं रहतीं हो ये रख लो इसे पहनकर यहाँ-वहाँ चलीं जाया करो, पर ताई ने जैसे कसम ही खा रखी थी उसने सीधे ही मना कर दिया, कि उसे इनकी कोई जरूरत नहीं है। और फिर उसने मंदिर के बरतन धोए। जमीन को धोया साफ सफाई के कामों में लगी रही।

कुछ दिन बाद रमा भी ये सभी बातें भूल गई। अब रमा ने मंदिर के पास एक नया फलेट ले लिया था, उसे एक काम वाली बाई की जरूरत थी। उसनें ताई से बात कर के उसे ही काम पर रख लिया। ताई बहुत मन लगा कर काम करने लगीं। एक दिन रमा ने घर में कथा करवाई। उसमें भी ताई ने बहुत मदद की। पर एक बात रमा को बड़ी अजीब लगी की ताई ने सारे दिन पूरे काम करती रहीं पर कमरे से बाहर नहीं निकली।

जब सभी लोग चले गए तब ताई को भी खाना खिलाया। रमा ने उसे पुछा की वह पूरे दिन कमरे में ही रही बाहर क्यों नहीं आई, यह सुनते ही ताई फफक के रो पडी, उसने बताया कि जो पंडित पूजा कराने आये थे, वह उसका बेटा था। उसने अपने घर से निकाल दिया था। बेटा तो बहुत अच्छा है मगर बहू अच्छी नहीं है उसने ही ताई को इतना सताया और झूठे आरोप लगा कर घर से निकाल दिया। रमा ने उसे पूछा कि वे कया थे। ताई ने कहा कि बहू ने ही उसके कपड़ों में बेटे के पैसे गहने छिपा दिये और आरोप साबित कर दिया था। तब से ही वह मंदिर में रहने लगीं थी।

रमा  ताई के बेटे से मिली तो पता चला कि बहू भी बेटे का सब किमती सामान पैसे लेकर उसके बेटे को छोड़ कर चलीं गई थी। और बेटा अपनी माँ को ढूंढ रहा था। रमा ने ताई को उसके बेटे के पास पहुंचा दिया था।

ताई अब चप्पलें पहनने लगी थी और रमा से मिलने जरूर आती। ताई ने कसम खाई थी की जब तक वो अपने बेटे से नहीं मिल जाती तब तक चप्पल नहीं पहनेगी। और मंदिर में सेवा करतीं रहेगी।  रमा ने देखा ताई सुबह सुबह मंदिर धोकर आरती में खडी धी और रमा की प्रार्थना कबूल हो गई थी। रमा भरी आँखों से ईश्वर को शुक्रिया अदा करने लगी ।

- जया भराडे बडोदकर, टाटा सेरीन,  ठाने वेस्ट,  महाराष्ट्र