इक समंदर है - सुनील गुप्ता

 

 ( 1 ) इक समंदर है

जो बहता चले सदा,

इन आँखों में मेरे अनवरत  !

और मन अंतस की गहराई में....,

चले बहता वेदना का एक निर्झर सतत!!

( 2 ) इक तस्वीर है

जो मन मस्तिष्क में,

सदैव छायी रहती है मेरे   !

और एक पल भी दूर न हो मुझसे.....,

चले कराए वेदना का अहसास यहाँ पे !!

( 3 ) इक तहरीर है

जिसे भूलाए न भूलें,

रहें स्मृतियों में जीवित सदा  !

और ये यादें ले जाएं उन्हीं मोड़ पे हमें...,

जिस मोड़ पर कभी हम हुए थे ज़ुदा !!

( 4 ) एक तक़रीर है

जो छुए दिल को,

चले कम करती वेदनाओं को  !

और इन्हें सुनते गुनते उतारते जीवन में...,

चलें गम गलत करते, भूलाते दुःखों को !!

( 5 ) एक क़लंदर है

जो चले मस्ती में,

यहाँ से वहाँ घूमे फिरे  !

और बन फ़क्कड़ अपनी फ़क़ीरी में...,

चले सीखलाए ज़िन्दगी, कैसे जीनी है !!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान