गीत (शीत लहर) - जसवीर सिंह हलधर
शीत लहर में बर्फ बने हैं मेरे मन के गीत,
ठिठुरन में घवराये दिखते शब्दों के सुर मीत ।
अपना मुखड़ा लगे पराया ओढ़े सर पर खेस,
सर्दी से पूरे कस्बे का बदल गया परिवेश ।
परिवर्तन का ये उपक्रम क्यों होता कठिन प्रतीत,
शीत लहर में बर्फ बने हैं मेरे मन के गीत ।।1
कुहरे के जंगल में खोये रेल बसों के चित्र,
घर से बाहर कम आते हैं ठंड सताए मित्र ।
मौसम के तीखे बाणों से हुए सभी भयभीत ।
शीत लहर में बर्फ बने हैं मेरे मन के गीत ।।2
मौसम का परिवर्तन क्रम है डरने की क्या बात,
सर्द गर्म ऋतुओं की बेला प्राकृतिक सौगात ।
वर्तमान का दिन बन जाता भूतकाल की रीत ।
शीत लहर में बर्फ बने हैं मेरे मन के गीत ।।3
अंगारे भी लगते अब तो जैसे सुर्ख गुलाब,
चलता राही रुक जाता है देखे जला अलाव ।
"हलधर" कविता का अनुरागी हार कहो या जीत ।
शीत लहर में बर्फ बने हैं मेरे मन के गीत ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून