पावस में सावन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
पावस सुहाना लगे धरती के भाग्य जगे
उस पर सावन की महिमा भी न्यारी है।
बादलों की आवाजाही ताप कराती कम
ग्रीष्म का प्रकोप घटा चैन मिला भारी है।
तपती धरा ने थोड़ा चैन वर्षा से पाया
दहक-गमक भू से निकलती सारी है।
नन्ही-नन्ही कोपलों ने तनिक उठाया सिर
बीर-बहूटियों की भी छटा लगे प्यारी है।
तड़ित तड़क कर, धड़कन है बढ़ाती
चहुँदिशि उठ रहा शोर बड़ा भारी है।
पिया परदेश वासी लौटे नहीं अब तक
आस लगा बैठी हुई एक सकुमारी है।
वो भी हैअकेली यहाँ पिया भी अकेले होंगे
हृदय में चुभ रही यादों की कटारी है।
ऐसे में जो मेघ आ के पिय का संदेशा देते,
खबर मधुर पा के चैन पाती नारी है।
ऋतु के बदलने से वसुधा नवेली लगे
मुख पर धरती के आभा नई छा रही।
पादपों के पर्ण सारे बारिशों में धुल रहे
चमकीले पातों की छवि हिय हुलसा रही।
हरी-हरी दूब के धरती पे कालीन सजे
फैली हरियाली सबके मन को लुभा रही।
प्रकृति सलोनी लगे धूप-छाँव खेल चले
सोलह शृंगार कर अव इठला रही।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश