जांत-पांत और ऊंच नीच के विरोधी थे संत रविदास - इंजी. अतिवीर जैन पराग

 

vivratidarpan.com - आज जबकि हमारे देश के कई नेता देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं और नागरिकों को जातियों में बांटकर आपस में लडवाकर उनके वोटो  के सहारे सत्ता पाना चाहते हैं। ऐसे में संत रविदास जी की का महत्व और बढ़ जाता है। जो जात-पांत और ऊंच-नीच के घोर विरोधी थे। रविदास ने अपने साहित्यिक पदों के माध्यम से सामाजिक एकता पर ज़ोर दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। आपने कहा कि व्यक्ति अपने कर्म से नीच होता है ना की जन्म से। संत रविदास जी कहते थे-

जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात। रैदास मनुष न जुड़ सके, जब तक जाति न जात। अर्थात् समाज में जातियां केले के पेड़ के तने के समान है जिसको जितना ही छीलो पेड़ खत्म हो जाता है और कुछ नहीं मिलता। इसी प्रकार समाज में जाति-जाति करने से कुछ नहीं मिलेगा इंसान खत्म हो जाएगा। रविदास जी ने कहा - जनमजात मत पूछिए ,का जात अरु पात। रैदास पुत सब प्रभु के , कोए नहिं जात कुजात। किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति पाँति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है। और कोई भी जाति बुरी जाति नहीं है। रविदास जी ने कहा मनुष्य किसी भी जाति में जन्म लेने से नीच या छोटा नहीं हो जाता। मनुष्य अपने कर्मों से पहचाना जाता है। और जो नीच कर्म करता है वही नीच होता है। रविदास जन्म के कारने,होत न कोई नीच। नर कुं नीच करि डारि है, ओछ कर्म की कीच।

रविदास सभी प्रकार के भेदभाव को निरर्थक बताते थे और सभी को प्रेम पूर्वक मिलजुल कर रहने का उपदेश देते थे। आपका मानना था कि राम, कृष्ण, करीम ,राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम है। वेद, कुरान, पुराण, सभी में एक ही परमेश्वर का जिक्र हैं। कृष्ण, करीम, राम, हरी, राघव, जब लग एक न पेखा।  वेद, कतेब, कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।

रविदास कहते थे भक्ति में ही शक्ति है। और जो मनुष्य दिन और रात राम का नाम जपता है।  राम के समान हो जाता है। और उसमें कोई भी क्रोध और काम भावना नहीं रहती। रैदास कहे जाके हदे, रहे रैन दिन राम।

सो भगता भगभंत सम , क्रोध न व्यापे काम।

आपका कहना था कि अभिमान को त्याग कर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल हो सकता है। जैसे विशालकाय हाथी शक्कर के दानों को नहीं चुन सकता। जबकि एक लघु पीपलीका यानी चींटी शक्कर के दानों को आराम से चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान और बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रता पूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।

रैदास तेरी भक्ति दूरी है, भाग बड़े सो पावे।

तजि अभिमान मेटी आपा पर, पीपीलक  हवे चुनी खावे।

एक बार एक पर्व पर उनके पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रविदास के शिष्य ने भी उनसे गंगा-स्नान चलने के लिए कहा। रैदास ने कहा कि मैंने पहले से ही अपने ग्राहक को जूता देने का वादा कर रखा है। और अब मेरी वहीं प्राथमिक जिम्मेदारी है। अगर मैं गंगा- स्नान पर चला भी गया तो मेरा मन तो इस काम में लगा रहेगा। फिर मुझे पुण्य कैसे मिलेगा? मनुष्य को वही काम करना चाहिए जो उसका अंत:करण करने को तैयार हो। मन सही है तो मेरे कठौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो जाएगा। अर्थात मन चंगा तो कठौती में गंगा (कठौती यानी एक बर्तन जिसमें चमड़े को भिगोया जाता है।)

15वीं शताब्दी में जब देश में जात-पात, ऊंच-नीच और धार्मिक भेदभाव अपने चरम पर था ,संत रविदास का जन्म हुआ। रविदास जी को कबीर ने संत रविदास कहा। इन्हें संत शिरोमणि, सतगुरु की उपाधि दी गई।

रविदास जी एक महान संत, दर्शन शास्त्री, समाज सुधारक और ईश्वर के उपासक थे। आपके 40 पदों को पांचवें सिख धर्म गुरु अर्जनदेव ने सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया था। रविदास जी ने जात-पात का, ऊंच नीच, छुआछूत, भेदभाव का विरोध किया और मानव को आत्मज्ञान ग्रहण कर आत्मकल्याण का मार्ग बताया। आपकी कविताओं में अवधी राजस्थानी खड़ी बोली उर्दू फारसी के शब्दों का मिश्रण है।

रविदास जी का जन्म सन 1377 में सीरगोवर्धन गांव में वाराणसी जिले के अंतर्गत हुआ। आपके जन्म के बारे में कई मतभेद है कुछ लोग इनका जन्म 1399 में मानते हैं तो कुछ 1414  में। पर आपका सामाजिक कार्यकाल 1450 से 1520 के बीच रहा। आपकी मृत्यु भी आपके जन्म की तरह विवादित है। और 1528 से 1540 के बीच बताई जाती है। और आयु 120 साल से 150 वर्ष के करीब बतायी जाती है।

आपकी माता का नाम कलसा देवी था। और पिता का नाम संतोषदास रघु था। आपके पिता पेशे से चर्मकार थे और जूते चप्पल बनाने का काम करते थे। आपकी शादी लोनादेवी से हुई। आपका एक पुत्र विजयदास और पुत्री रविदासिनी हुई। बताया जाता है कि आपका जन्म का दिन रविवार था। इसलिए इनका नाम रविदास रखा गया।

संत रविदास काशी के स्वामी रामानंदाचार्य के शिष्य थे। संत कबीर उनके समकालीन गुरु भाई थे। आपके शिष्यों में कृष्णभक्त मीराबाई , चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाला रानी, सिकंदर लोदी, राजा पीपा, राजा नागरमल, आदि अन्य कई शासक राजा थे। चित्तौड़ के किले में भी संत रविदास की छतरी बनी हुई है।

वाराणसी में गुरु रविदास स्मारक और पार्क बना हुआ है। वही पर गुरु रविदास घाट हैं।

रविदास ने कहा ईश्वर ने इंसान बनाया है। ना कि इंसान ने ईश्वर को बनाया है। और जब ईश्वर ने इंसान बनाया है और सभी इंसान एक समान बनाए हैं। तो सभी का इस पृथ्वी पर समान अधिकार है। संत रविदास जयंती के इस शुभ अवसर पर हम सब सकंल्प ले की समाज से  जात-पात का भेदभाव मिटाएंगे ऊँच-नीच को दूर करेंगे गरीबी को मिटाएगे एक दूसरे का सम्मान करेंगे यही रविदास जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगीं। (विनायक फीचर्स)