संस्कृति - सुनील गुप्ता
(1) " सं ", संस्कारों से है रची बसी और बुनी
हमारी पूरी जीवन चर्या दैनंदिनी !
और हमने सदा बड़ों से सीखी....,
अपने धर्म संस्कृति की रक्षा करनी !!
(2) " स् ", स्वयं से स्वयं को जानकर
है अध्यात्म की ओर आगे बढ़ना !
और धर्म संस्कृति को पहचानकर....,
सदैव उसी अनुरूप कार्य करते रहना !!
(3) " कृ ", कृत्य हों सदा हमारे ऐसे कि
जिसपे हो सभी को नाज हम पर !
और देश समाज का मान बढ़ाते......,
चलें धर्म संस्कृति का परचम लहराकर !!
(4) " ति ", तिरस्कार की ना रखें कभी भावना
और करें सभी धर्म संस्कृतियों का सम्मान !
आपसी प्रेम सद्भाव सहिष्णुता को सदैव....,
देते चलें अपने जीवन में यथायोग्य स्थान !!
(5) " संस्कृति ", संस्कृति है हमारी जड़ों में बसी हुयी
और इसी से है हमारे जीवन की पहचान !
करते रहें सतत इसकी यहां पर रक्षा....,
और बढ़ाते रहें देश का गौरव मान सम्मान !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान