आज की सुबह - रेखा मित्तल

 

आज सुबह कुछ अलग थी,

समुद्र की मदमस्त‌ लहरें,

धरा के आँचल पर खेलती हुई,

रात की खामोशी को चीरती,

अपने अस्तित्व का आभास कराती।

कभी धीमे कभी उछलती हुई,

आकाश भी था मौन,

नीरवता सी छाई हुई,

मेरे मन की भाँति,

एक अलग सा सुकून,

न कोई हलचल ,न कोई परिंदा,

बस केवल समुद्र की लहरें।

मन को सहलाती हुई,

मानो मरहम सा लगा रही,

दिल की सतहों पर,

शांत अहसास,शांत मन,

भीग रहा था तन और मन,

एक सुखद  सुकून में।

- रेखा मित्तल, चंडीगढ़