रक्षाबंधन - सुनील गुप्ता

 

( 1 ) " र ", रहे अमर

बहन-भाई का प्यार,

और सदा प्रेम-स्नेह बना रहे  !

चलें बाँटते आपस में एक दूजे को....,

आनंद उपहार की अनुपम सौगातें  !!

( 2 ) " क्षा ", क्षालन करें

 संबंध निर्मल बनाए चलें,

और बनी रहे पवित्रता रिश्तों में  !

चलें जोड़ते पावन संबंधों की अटूट डोरी को.,

और निभाए चलें आत्मीय संबंध दिल से!!

( 3 ) " बं ", बंधन है

ये जीवन का अप्रतिम,

और रहे जीवनपर्यंत उम्रभर ऐसे ही  !

आओ, चलें सहेजते इन अनमोल संबंधों को.,

और दें भरपूर मान-सम्मान सदा ऐसे ही !!

( 4 ) " ध ", धरा अंबर

चाँद सूरज तारे जैसे,

बनें रहे चिरंजीवी ये प्यार सदैव यहाँ पे  !

बनायी कैसी सुंदर रिश्तों की जोड़ी नियति ने..,

कि, ये संबंध इतिहास में अजर अमर हो गए!!

( 5 ) " न ", नेह प्रेम

के रेशमी धागे ने ,

बढ़ायी है महत्ता इस पर्व की यहाँ पे  !

आओ मनाए चलें खुशियों से रक्षाबंधन त्यौहार,

और छोड़ें न कोई कोर-कसर मनाने में इसे!!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान