भादो के रानी - अशोक कुमार

 

मैंय हौंव अटल कुँवारी रे, भादो के रानी।

सुनावत हौंव अपन जिनगी के कहनी।।

कुकुर मन लुटूर-लुटूर पुछी ला डोलावत हें।

पसर-पसर भर उँखर लार हा चूचवावत हे।।

मोर सुघरई ला देख के सब के मन मोहागे।

मोला सूँघियावत चार-पाँच झन मन आगे।।

मोर गोठ सून, अपन-अपन ले कहिथें मोला।

मैंय हा मया करथौंव कुतिया जादा तोला।।

कोनों हें करिया, सादा, लाली अउ चितकबरा।

गुर्रा-गुर्रा के भूँकत हें, गली-खोर मा जबरा।।

मोला पाए बर एक-दूसर के माते हे लरई।

चाब-चाब के भगवावत हें, माते हे करलई।।

अपन इजत कइसे बचाँव, फदिहत होगे जादा।

आवत-जावत जम्मों झन देखत हें तमासा।।

नारी हा खुलेआम होवत हे हवस के सिकार।

चबनहा कुकुर मन ला सजा देतिच सरकार।।

- अशोक कुमार यादव, मुंगेली, छत्तीसगढ़