कवित्व की पहचान - सुनील गुप्ता
Apr 3, 2024, 21:57 IST
(1) लहराए चलें
जब अंतर्मन में
भावों का गहरा समुंदर यहाँ पे !
तब, जो विचार कागज पे उतर आएं....,
वही' कवित्व की पहचान ', हमारी बन जाएं !!
(2) महकती रहें
विचारों की बगिया
सतत हमारे अंतस पटल पे !
जो विचार हमें उद्वेलित कर जाएं.....,
फिर,वही रच-बस आएं सरस गीतों में बनके !!
(3) कसकती चलें
कुछेक मन व्यथाएं
और जीवन में नैराश्य का भाव जगाएं !
ये भाव निकल बन आएं जब गीत गज़ल.....,
तो,कवित्व भाव में डूबें,स्वयं को भूल जाएं !!
(4) लरजती चलें
खुशियों की लहरें
जब आनंद में हो सराबोर, हम डूबते जाएं !
हों तभी प्रस्फुटित सुंदर अप्रतिम रचनाएं...,
जो हमें उल्लासित और प्रफुल्लित बनाएं !!
(5) सरसाए चलें
मन को हवाएं
और गीत गुनगुनाते आगे बढ़ते चलें !
जब दिखे दूर कहीं टिमटिमाता एक दीपक....,
तो, तन-मन में कवित्व भाव में जागते चलें !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान