न्यायिक व्यवस्था में नए सुधारों की आवश्यता - डॉ. हितेष वाजपेयी

 

Vivratidarpan.com - भारत में अदालतों में न्यायिक प्रक्रिया में देरी आम नागरिकों के न्याय के अधिकार को प्रभावित कर रही है, आज आवश्यकता है कि न्यायिक व्यवस्था में नए सुधार लाए जाएं।

केसों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, अदालतों में रविवार को भी एक तिहाई क्षमता के साथ काम करने का विचार बहुत ही सार्थक हो सकता है, जैसा कि चिकित्सा सेवाओं में होता है, जिससे न्याय तक पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।

भारत में केस पेंडेंसी के आंकड़े -

भारत के न्यायिक तंत्र में वर्तमान में लगभग 4.6 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें से 70% मामले जिला अदालतों में लंबित हैं।

देश की उच्च न्यायालयों में लगभग 59 लाख मामले और सुप्रीम कोर्ट में लगभग 70,000 मामले लंबित हैं।

केवल कोविड-19 महामारी के दौरान ही केसों में लगभग 30% की वृद्धि हुई।

वर्ष 2022 तक आंकड़े -  

  - सुप्रीम कोर्ट: 70,000 से अधिक लंबित मामले

  - उच्च न्यायालय: लगभग 59 लाख मामले

  - जिला एवं अधीनस्थ अदालतें: लगभग 4 करोड़ मामले 

अदालतों में रविवार को काम करने का विचार -

चिकित्सा सेवाओं की तरह ही न्यायिक सेवाएं भी नागरिकों के लिए आवश्यक हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में, रविवार को भी आवश्यक सेवाएं दी जाती हैं ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति का सामना किया जा सके।

इसी तर्ज पर, अगर अदालतें रविवार को भी काम करना शुरू कर देती हैं, तो इससे निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं:

1. केस पेंडेंसी में कमी:

   - अगर अदालतें सप्ताह में एक अतिरिक्त दिन काम करेंगी तो हर वर्ष लगभग 15-20% मामलों का निपटारा अतिरिक्त रूप से हो सकता है।

   - एक तिहाई न्यायिक कर्मचारियों और जजों की भागीदारी से, केस की पेंडेंसी में महत्वपूर्ण कमी लाई जा सकती है।

2. न्याय तक त्वरित पहुँच:

   - लंबित मामलों में कई संवेदनशील और आपराधिक मामले शामिल होते हैं जिनमें समय पर न्याय जरूरी है।

इस कदम से ऐसी सभी श्रेणियों के मामलों का निपटारा तेजी से हो सकेगा।

3. अधिक न्यायिक कर्मचारियों की भर्ती:

   - अदालतों में अधिक काम के दिनों को ध्यान में रखते हुए नए न्यायिक कर्मचारियों और जजों की भर्ती भी की जा सकती है, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और न्यायिक प्रणाली को और सशक्त किया जा सकेगा।

4. न्यायिक प्रक्रियाओं का आधुनिकरण और डिजिटलकरण:

   - डिजिटल अदालतें और ऑनलाइन केस फाइलिंग जैसी सुविधाओं का विस्तार करने से कार्यक्षमता में वृद्धि हो सकती है।

यदि रविवार को भी अदालतें संचालित की जाएं, तो डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग इसे सुलभ और सहज बना सकता है।

चुनौतियाँ और समाधान -

1. न्यायिक कर्मचारियों पर कार्यभार:

   - रविवार को काम करने से न्यायिक कर्मचारियों पर अधिक कार्यभार आ सकता है। इसके लिए रोटेशनल शिफ्ट और कर्मचारियों को अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होगी।

2. प्रस्तावित मॉडल:

   - एक तिहाई स्टाफ को रविवार के दिन ड्यूटी पर रखा जा सकता है और इन कर्मचारियों को सप्ताह के अन्य दिनों में आराम दिया जा सकता है।

3. अतिरिक्त संसाधनों का प्रबंधन:

   - कर्मचारियों की सुविधा और अदालतों में उचित व्यवस्थाओं के लिए वित्तीय बजट में वृद्धि करनी होगी।

इसके लिए सरकार से सहयोग लिया जा सकता है और बजट में इस बदलाव को शामिल किया जा सकता है।

अदालतों का रविवार को भी एक तिहाई संख्या में संचालन करना एक व्यावहारिक और आवश्यक कदम हो सकता है।

इससे न केवल केसों की पेंडेंसी में कमी लाई जा सकती है, बल्कि आम नागरिकों को न्याय मिलने में देरी भी कम हो सकती है।

इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए सरकार और न्यायपालिका को एक साथ आकर एक स्पष्ट योजना बनानी चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार और न्याय वितरण को और सुगम बनाया जा सके।

इससे स्पष्ट है कि रविवार को अदालतों का संचालन करना एक व्यावहारिक समाधान हो सकता है।

अगर इस विचार को लागू किया जाता है, तो यह न्यायिक व्यवस्था को मजबूती देने में सहायक होगा और न्याय प्राप्ति के अधिकार को संरक्षित करेगा।(विनायक फीचर्स)(लेखक मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रवक्ता हैं)