सावन में शिव पूजा का पौराणिक महत्व - डॉ आशीष मिश्र

 

vivratidarpan.com - सावन को सबसे पवित्र महीना माना जाता है, क्योंकि श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना का विशेष महत्व है। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखा जाता है और शिव की आराधना की जाती है

सावन के इस पवित्र महीने में भक्तों के द्वारा दो प्रकार के व्रत रखे जाते हैं:

1-  सावन सोमवार व्रत : श्रावण मास में सोमवार को रखा जाने वाला व्रत सावन सोमवार व्रत कहलाता है। सोमवार का दिन भी भगवान शिव को समर्पित है।

2- सोलह सोमवार व्रत : सावन को पवित्र महीना माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवार का व्रत शुरू करने के लिए यह बहुत ही अच्छा समय माना जाता है।

सावन मास के सोलह सोमवार -

प्रथम सोमवार से प्रारंभ करते हुए लगातार सोलह  सोमवारों को यह व्रत जारी रखते हैं। इस प्रक्रिया को सोलह सोमवार उपवास के नाम से जाना जाता है।

इसलिए सावन सोमवार का व्रत सर्वाधिक महत्व के रूप में जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस महीने में सोमवार का व्रत और सावन स्नान करने की परंपरा है। श्रावण के महीने में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल अर्पित करना बहुत फलदायी माना जाता है।

जब भक्त सोमवार को उपवास करते हैं, तो भगवान शिव उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं। सावन के महीने के दौरान, ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, देवघर, उज्जैन, नासिक सहित भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।सावन के महीने में बारिश के मौसम के साथ, पूरी पृथ्वी हरियाली से ढंक जाती है। महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में श्रावण महीने के अंतिम दिन उत्सव को नारेली पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

श्रावण मास व्रत और पूजा विधि -

सुबह सूर्योदय से पहले नहाएं।

पूजा स्थल पर वेदी रखें।

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लिए शिव मंदिर जाएं।

फिर पूरी श्रद्धा के साथ महादेव के व्रत का संकल्प लें।

सुबह और शाम भगवान शिव से प्रार्थना करें।

पूजा के लिए तिल के तेल का दीपक जलाएं और भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।

भगवान शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल और बेल के पत्ते सहित अर्पित करें।

व्रत के दौरान सावन व्रत की कथा अवश्य पढ़ें।

पूजा समाप्त होते ही प्रसाद वितरित करें।

शाम को पूजा पूरी होने के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें।

सावन मास के व्रत से होने वाले लाभ -

सावन मास शिवजी को समर्पित है। इसलिए, कोई भक्त सच्चे मन और पूर्ण भक्ति के साथ महादेव का उपवास रखता है, वह निश्चित रूप से शिव का आशीर्वाद प्राप्त करता है।विवाहित महिलाएँ अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए सावन में शिव का व्रत भी रखती हैं।

काँवड यात्रा - 

इस पवित्र महीने में शिव भक्त के द्वारा काँवड़ यात्रा करते हैं। देवभूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार और गंगोत्री धाम में सैकड़ों शिव भक्त आते हैं। वे इन तीर्थ स्थानों से गंगा जल से भरी काँवड़ को अपने कंधों पर लाते हैं और बाद में वह गंगा जल भोलेनाथ को चढ़ाते है। इस यात्रा में भाग लेने वाले भक्तो को काँवरिया अथवा काँवड़िया कहा जाता है।

काँवड पौराणिक कथा -

पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक विष भी था, जिससे ब्रह्मांड नष्ट होने का भय था। तब ब्रह्मांड की रक्षा के लिए, भगवान भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से भोलेनाथ का कंठ नीला पड़ गया और इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ा।। ऐसा कहा जाता है कि रावण ने काँवर में गंगाजल लेकर आया और उसने उसी गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक किया और फिर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।

सावन में मंत्र -

सावन के दौरान ओम् नमः शिवाय का जाप करें।

प्रचलित सावन व्रत की कथाएं - 

प्राचीन समय में एक अमीर आदमी था, लेकिन दुर्भाग्य से, उस व्यक्ति की कोई संतान न थी। इस बात का दुःख उन्हें हमेशा सताता था, लेकिन दोनों पति-पत्नी शिव भक्त थे। दोनों ही भगवान शिव की आराधना में सोमवार को व्रत रखने लगे। दोनों की सच्ची भक्ति को देखकर, माता पार्वती ने शिव भगवान से दोनों नि:संतान दंपति की सूनी गोद को भरने का आग्रह किया।भोलेनाथ ने इसे स्वीकार कर लिया और भोलेनाथ के आशीर्वाद से उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन यह बालक अल्पायु होने की एक आकाशवाणी हुई। यह बच्चा 12 साल की उम्र में मर जाएगा। इस आकाशवाणी के साथ उस व्यक्ति ने अल्पायु बालक का नाम अमर रखा। उस धनी व्यक्ति ने अपने पुत्र अमर को शिक्षा के लिए काशी भेजना चाहा इसलिए, उन्होंने अपने बेटे अमर के साथ अपने साले को काशी भेजने का निश्चय किया। काशी की ओर जाने वाले रास्ते में जहाँ भी वे विश्राम करते, ब्राह्मणों को दान और दक्षिणा देते थे। रास्ते में वे एक शहर में पहुँचे। जहां एक राजकुमारी की शादी हो रही थी। उस राजकुमारी का दूल्हा एक आँख से काना था, यह बात दूल्हे के परिवार वालों ने राजा के परिवार से छिपाकर रखी थी। उन्हें डर था कि अगर यह बात राजा को पता चल गई तो यह शादी नहीं होगी। इससे बचने के लिए दूल्हे के घर वालों ने अमर से झूठमूठ का दूल्हा बनने का आग्रह किया और वह उनके आग्रह को मना न कर सका। इस तरह, अमर ने उस राजकुमारी से शादी की थी,लेकिन अमर उस राजकुमारी को धोखे में नहीं रखना चाहता था। इसलिए उसने राजकुमारी की चुनरी में सारी बाते पूरी सच्चाई से लिख दी। जब राजकुमारी ने अमर का संदेश पढ़ा, तो उसने अमर को अपना पति माना और काशी से लौटने तक प्रतीक्षा की। अमर और उसके मामा वहाँ से काशी की ओर चल दिए। दूसरी ओर, अमर हमेशा धार्मिक कार्यों में लगा रहता था। जब अमर ठीक 12 साल का हुआ, तब वह शिव मंदिर में भोले नाथ को बेल के पत्ते चढ़ा रहा था।उसी समय वहाँ यमराज उसके प्राण लेने पधार गए, लेकिन इससे पहले, भगवान शिव ने अमर की भक्ति से प्रसन्न होकर दीर्घायु होने का वरदान दिया था। परिणामस्वरूप, यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा। बाद में अमर काशी से शिक्षा प्राप्त करके अपनी पत्नी (राजकुमारी) के साथ घर लौटा। - डॉ आशीष मिश्र उर्वर , कादीपुर, सुल्तानपुर , उत्तर प्रदेश  मो.9043669462