मिले कहां अब वो यार - डॉ. सत्यवान सौरभ

 

दोस्त बने सब काम के, करें काम से प्यार।

बैठ सुदामा सोचता, मिले कहां अब वो यार।।

फ्रेंडलिस्ट में है जुड़े, सबके दोस्त हजार।

मगर पड़ोसी से नहीं, रहा तनिक भी प्यार।।

मित्र मिले हर राह पर, मिला नहीं बस प्यार।

फैंक चले सब बाँचकर, ज्यों पढ़कर अखबार।।

नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।

संगी- साथी दे रहें, दिल को गहरे घाव।।

हुए कहां कब दोगले, सौरभ किस के मित्र।

कांधे औरों के चढ़े, खींचें खुद के चित्र।।

सुख में लगता है सदा, सबका सही चरित्र।

दुख में ही परखे मनुज,  सौरभ सच्चा मित्र।।

सच्चे दोस्त का कभी, होता नहीं विकल्प।

मंजिल पाने का सदा, देता जो संकल्प।।

- डॉo सत्यवान सौरभ , 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा