गीत  - जसवीर सिंह हलधर

 

रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।

जब अँधेरों ने हमें धोखा दिया है ।।

हर तरफ ही धूल की चादर चढ़ी है ।

राह मंज़िल रोककर ख़ुद ही खड़ी है ।

आज भी भटके हुए से काफ़िले हैं ,

पाँव ने कब नाम थकने का लिया है ।।

रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।1

रात ने ओढा अनोखा आवरण है ।

चाँदनी का आज कैसा आचरण है ।

जुगनुओं के आसरे बैठा रहा हूँ ,

घूँट भर भर रात मैने विष पिया है ।।

रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।2

सोच छोटी नाम से दिखते बड़े हैं ।

कागज़ों नें आज नकली आंकड़े है ।

बस गरीबी भाषणों में मिट रही है ,

बात सच्ची बोलने से मुँह सिया है ।।

रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।3

बुझ गयी है लालसा सी जिंदगी की ।

स्वच्छता दासी बनी अब गंदगी की ।

दाव पर है साख सच्चे हौसलों की ,

दर्द में "हलधर"बता कैसे जिया है ।।

रोशनी ने काम कब पूरा किया है ।।4

  - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून