गीत - जसवीर सिंह हलधर

 

ऊंची ऊंची बात बनाना , सीख न पाया मैं तो यारो ।

मज़हब पर झगड़ा करवाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।

जाति धर्म की घास उगी है ,भारत भू के मैदानों में ।

सत्ता खोज रहे हैं नेता ,गांव शहर के शमशानों में ।

पशुता नांचे दरबारों में ,निर्वाचन के गलियारों में ,

भड़काऊ नारे लगवाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।1

अधिकारों की फ़सल उगी है ,लोकतंत्र के इस आंगन में ।

कर्तव्यों की मौत हो रही ,दाग खून के हर दमन में ।

पूजा होती अय्यारों की , जाति धर्म के मक्कारों की ,

इनके जैसा लाभ उठाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।2

बाजारू आपाधापी में ,आदर्शों को बिकते देखा ।

छंद ज्ञान भी काम न आया ,खुला नहीं मंचों पर लेखा ।

बड़े बड़े कवियों के फंडे, सीख न पाया मैं हथकंडे ,

संबंधों का चैक भुनाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।3

सिंडिकेट बने मंचों के ,गुटबाजों की गहमागहमी ।

छंद उपासक बेवस फिरते ,झेल रहे इनकी बेरहमी ।

काम न आती है कविताई, ' 'हलधर' जान गया सच्चाई ,

रोज पुराने गीत सुनाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।4

ऊंची ऊंची बात बनाना ,सीख न पाया मैं तो यारो ।।

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून