प्रेम देह नहीं समर्थन मांगता है – स्वाति शर्मा

 

vivratidarpan.com- कुछ अभिव्यंजनायें बाकी थी जो वो असहज महसूस कर रही थी | कभी कनखियों से देखती और सारे समीकरण अपने आप उसके मस्तिष्क में उधेडबुन करने लगते | क्या कभी भी अंकित ने उसे प्रेम किया या सिर्फ एक छलावा उसके जीवन को विस्तार दे रहा था इतना धोखा कैसे कोई कर सकता है जबकि अनु हमेशा तन मन धन से अंकित के प्रति समर्पित रही है |

प्रेम देह नहीं आत्मा चाहता है, छल  नहीं सत्य के साथ समर्थन मांगता है |पर उसके रिश्ते में सिर्फ एक गाँठ थी जो विवाह के समय बंध गई उस गाँठ में कितने विषैले सर्प साथ मे अनु के जीवन को तब से काट रहे है बस अनु ही जानती थी |

आज जो हुआ वो अप्रत्याशित था इतना नहीं सोचा था उसने की खोखले रिश्ते को ढोते ढोते इस पड़ाव पर आ जाएगी कि मारपीट तक भी करने में अंकित परहेज न करेगा | जहां स्त्री समर्थ है नये नये आयाम गढ रही है वही अनु सिर्फ प्रेम के पाश जीवन का अमूल्य काल अंकित के हाथो  काला करती जा रही थी |वो नफरत भरी निगाह से देख चला गया | अनु शांत थी स्पन्दनों में उलझी बेतरतीब | अपने मार के दर्द को सहती और खुद पर धिक्कारते हुए उठी और रसोई में जाकर खाने की तैयारी करने लगी |  – स्वाति शर्मा , सेक्टर -134, नोएडा, उत्तर प्रदेश