कविता (ठिठुरन) - मधु शुक्ला

 

ठंड की बरसात लाती साथ ठिठुरन को,

अग्नि से रक्षित करें तब लोग जीवन को।

गर्म कपड़ों की बढ़े बिक्री खरीदें सब,

ठंड से राहत दिये हैं आम कपड़े कब।

धन जुटाना ही पड़े जीवन बचाना यदि,

साथ ठंडी का खुशी से है निभाना यदि।

कर्म करते व्यक्ति को ठिठुरन नहीं घेरे,

हो जहाँ आलस जमाती है वहीं डेरे।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश