मध्य प्रदेश में राजनीतिक वनवास की ओर धकेले जा रहे कमलनाथ - दिग्विजय सिंह : पवन वर्मा

 

Vivratidarpan.com - मध्य प्रदेश में कांग्रेसी  राजनीति के दृश्य पटल पर पिछले चार दशक से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह छाए हुए थे। दोनों नेताओं ने अपने ही दल के कई नेताओं से मुकाबला कर कांग्रेस की ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में अहम मुकाम स्थापित किया। बीच में दोनों ही नेता केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे। जब 15 साल से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो दोनों ही नेताओं को मध्यप्रदेश में फिर से सक्रिय किया गया। पिछले साढ़े पांच साल से दोनों फिर से सक्रिय हुए, लेकिन हाल ही के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद अब दोनों ही नेताओं की मध्य प्रदेश में क्या भूमिका होगी, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में जमकर कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है केंद्रीय नेतृत्व ने  दोनों ही नेताओं को राजनीतिक वनवास देने कि मन बना लिया है।

ऐसे शुरू हुआ कमलनाथ का मध्य प्रदेश में दखल -

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ देहरादून में पढ़ाई करने वाले कमलनाथ की मध्य प्रदेश में इंदिरा गांधी ने ही एंट्री करवाई थी। उन्हें मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मजबूत गढ़ में शुमार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया। यह सीट मध्यप्रदेश के गठन के बाद से 1977 तक हुए लोकसभा के पांचों चुनाव में जीती थी। कांग्रेस के खिलाफ देश भर में 1977 में चली लहर में भी यह सीट कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्र ने जीती थी। इस चुनाव के बाद कमलनाथ को छिंदवाड़ा भेजा गया। वे पहला चुनाव 1980 में लडे और 70 हजार मतों से जीते। इस चुनाव के साथ ही उनका मध्य प्रदेश की राजनीति में दखल शुरू हो गया।

पत्नी-बेटे दोनों को भी बनाया सांसद -

कमलनाथ लगातार चार चुनाव छिंदवाड़ा से जीते। इस वक्त तक नाथ का देश की राजनीति में भी खासा दखल हो चुका था। कुछ आरोपों से घिरने के बाद पार्टी ने इसी सीट से उनकी पत्नी अलका नाथ को टिकट दिया और वे भी सांसद बन गई। बीच में कमलनाथ ने पत्नी से इस्तीफा दिलवाया और खुद उपचुनाव लड़े, लेकिन भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद नाथ ने पटवा को अगले चुनाव में हरा दिया। इसके बाद से 2014 तक के सभी लोकसभा चुनाव कमलनाथ इस सीट से जीतते रहे। वर्ष 2018 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस सीट को अपने बेटे नकुल नाथ के हवाले कर दिया और अभी भी नकुल नाथ इस सीट से लोकसभा के सांसद हैं। कमलनाथ छिंदवाड़ा विधानसभा से विधायक हैं।

दिग्विजय सिंह 1977 में पहुंचे थे विधानसभा -

दिग्विजय सिंह की मध्य प्रदेश की राजनीति में एंट्री कमलनाथ से करीब तीन साल पहले हुई थी। दिग्विजय सिंह ने 1977 में विधानसभा का चुनाव राघौगढ़ विधानसभा से लड़ा थे। विधानसभा के दो चुनाव लड़ने के बाद वे 1984 में राजगढ़ लोकसभा से चुनाव जीते और इसके बाद वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। राघौगढ़ से अब उनके बेटे जयवर्धन सिंह तीसरी बार विधायक बने हैं। जबकि दिग्विजय सिंह अब राज्यसभा के सदस्य हैं।

अपनी ही पार्टी के कई नेताओं से किया मुकाबला -

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी के कई दिग्गज नेताओं से मुकाबला किया। जब प्रदेश की राजनीति में दोनों नेताओं का प्रवेश हुआ था। तब मध्य प्रदेश में प्रकाश चंद सेठी, अर्जुन सिंह, विद्याचरण शुक्ल, श्यामा चरण शुक्ल के आसपास कांग्रेस की राजनीति चलती थी। इसी बीच प्रदेश में माधवराव सिंधिया और मोतीलाल वोरा का भी कद बढ़ गया। इन 6 नेताओं के बीच कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मजबूती से न सिर्फ टिके रहे, बल्कि कांग्रेस को अपने आसपास केंद्रित करते रहे। धीरे-धीरे पुराने नेता दिवंगत हो गए और प्रदेश में सिर्फ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह बचे। बीच में एक दशक तक माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपना वर्चस्व कांग्रेस पर कायम किया, लेकिन वर्ष 2020 में वे भाजपा में शामिल हो गए।

अब क्या होगी भूमिका -

हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को ही कांग्रेस के हाईकमान ने आगे किया था। कमलनाथ का चेहरा सामने था और दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे से अपनी रणनीति बना कर चुनाव लड़वा रहे थे। दोनों ही नेताओं का पिछले चार दशक से अपना अलग गुट प्रदेश की राजनीति में रहा है। दोनों के अपने-अपने समर्थकों की बड़ी फौज भी है,लेकिन इस चुनाव में मिली हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने अचानक से कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया और युवा नेता जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी। वहीं दिग्विजय सिंह की भूमिका भी प्रदेश में क्या होगी यह स्पष्ट नहीं हैं। कुल मिलाकर अब आभास होने लगा है कि कभी मध्यप्रदेश में कांग्रेस को अपनी मुट्ठी में रखने वाले दो दिग्गज कमल नाथ और दिग्विजय सिंह शनैः शनैः राजनीतिक गलियारों में वनवास की ओर धकेले जा रहे हैं। (विनायक फीचर्स) विशेष-लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं।