जीवन - राजू उपाध्याय

 

मन योगी है तेरे द्वारे, अब तुम कर दो सुनहरी शाम,

सांझ-सकारे मैने सूने घाटों पे, तेरे लिखे सौ सौ नाम।

प्रथम दृष्टि का नैन मिलन, मन-मंदिर में आ ठहरा है,

उर आंगन महका कर, अब तुम कर दो तीरथ धाम।

पंचामृत घोलो जीवन में,,जो तेरा ज्योति-प्रसाद बने,

वर्षा की घनघोर छटा में,ज्यों निकले उजियारी घाम।

वृंदावन की कुंजगली में, ब्रज के रज-कण में तुम हो,

मन योगी मेरा खाली लौटा,,कहां बसे हो तुम श्याम।

तुम योगेश्वर ! तुम परमेश्वर ! तुम गीता ,रामायण हो,

मन के  चित्रकूट  में बसते,, तुम ही तो सीता के राम।

करो पांचजन्य का शंख घोष, तुम धरती की पीर हरो,

संहार करो ! संचार करो ! अब तुम कर दो सारे काम।

- राजू उपाध्याय (स्वरचित), एटा , उत्तर प्रदेश