इबादत-ए-पत्थर - सुनील गुप्ता

 

चलूँ

करता इबादत यहाँ पे,

तन-मन से अपने श्री इष्ट की   !

बसा रखी है जो प्रभु मूरत हिय में.....,

नित करता चलूँ इबादत यहाँ उसकी !! 1 !!

पुजूँ

नित्य अपने शालिग्राम को,

और कराऊँ गंगाजल से स्नान उसे  !

पहना के शुभ्र मोर मुकुट पीताम्बर...,

चलूँ करता श्रृंगार सुंदर मन-पुष्पों से  !! 2 !!

भजूँ

संकीर्तन भजन प्रभु के,

करूँ अपने आराध्यदेव का श्रीपूजन  !

चढ़ा के अर्घ्य नैवेद्य अक्षत श्रीचरणन में...,

नित्य करता चलूँ श्री हरि के प्यारे दर्शन!! 3 !!

रहूँ

चाहें यहाँ कहीं पे,

पर, कभी ना छोड़ूँ करना इबादत  !

हे मेरे प्रभु श्री परमेश्वर परवरदिगार....,

देखा नहीं,तुझे पर कर कल्पना रची मूरत!! 4 !!

करूँ

इबादत पत्थर की,

प्रभु ढूंढ लिया है इसी में आसरा  !

चलें बसती हैं श्वासें मेरी राम में....,

एक तू ही बना सभी का लाड़ला सहारा !! 5 !!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान