"हार्ट ऑफ सबौर" बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज बेहद मनमोहक

 

vivratidarpan.com बिहार - "हार्ट ऑफ सबौर " बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज सबौर सुनकर आप आश्चर्यचकित होंगे लेकिन यह सच है। एग्रीकल्चर कॉलेज की सुंदरता, भव्यता आपको इतनी आकर्षित करेगी कि आप दंग रह जाएंगे। एक बार अगर इस कॉलेज के अंदर गए तो घंटों बाहर आना नामुमकिन है। इस कॉलेज की सुंदरता, भव्यता, मनमोहन फूलों की क्यारियां आपका स्वागत यूं करेंगी मानो आप स्वर्ग में आ गए हो। हरे-भरे पेड़ों की सरसराहट, फूलों की खुशबू, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां आपके दिलों में यूं रच बस जाएगी कि आप बरसों इसे भूल नहीं पाएंगे। पेड़-पौधों के साथ-साथ इसके कैंपस में शॉपिंग कंपलेक्स ,ऑफिसर्स क्लब, कैंटीन, कृषि सेवा केंद्र, गेस्ट हाउस डेयरी आपको देखने को मिलेंगे। सबौर एग्रीकल्चर कॉलेज में रिसर्च बहुत वैज्ञानिकों द्वारा चलते ही रहते हैं जो हमेशा के लिए सबके लिए वरदान साबित होता रहा है। हर साल लगने वाला किसान मेला जो फरवरी में अक्सर लगता है लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। फल, फूल, अनाज की तरह-तरह की किस्में लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं ।"हार्ट ऑफ सबौर " यूं ही नहीं कहती कभी जाकर कुछ पल आनंद लेकर आइये फिर देखिए आपका दिल यूं उछल कूद करने लगेगा मानो 20 साल उम्र कम हो गई हो। मैं जब भी जाती हूँ जरूर पूरा कॉलेज कैम्पस घूमती हूँ। हर वह जगह जाती हूँ जहां मैं रहती थी। चुपचाप वो सब घर भी देख कर आती हुँ जहां सालों पहले समय बिताया था। कुछ साल पहले भी गई थी  मोहल्ले का चक्कर भी लगाया और घर के अंदर भी गई। काफी अच्छे लोग थे जैसे ही मैंने बताया मैं यहां पहले रहती थी अपना कमरा देखना चाहती हूंँ उन्होंने मुझे अंदर बुलाया और मैं अपने कमरे में गई ।पूरा घर देखा और पुरानी यादों को समेटे मैं वापस आई। खुशी हुई आज भी अच्छे लोग हैं उन्होंने मेरी भावनाओं को समझा और मुझे इजाजत दी थी घर के अंदर आने की यह बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए । मैंने अपने कमरे में अपनी फोटो भी निकाली यादगार के लिए क्या पता फिर कभी आऊं तो अंदर आने मिले ना मिले। आज भी वही पहुंच जाता है 24 साल बिताया है मैं वहां आज भी मन भाग कर वहीं पहुंच जाता है।

सालों बाद फिर परिवार के साथ मुंबई से सबौर पहुंची थी।मन बार बार एग्रीकल्चर कॉलेज कैंपस की तरफ भाग रहा था। मैं भी परिवार के साथ शाम होते ही पहुंच चुकी थी।कॉलेज कैंपस शहर की चमक दमक से दूर, गांव की हवा और सादगी भरी जिंदगी की तलाश यहां आकर खत्म हो गई थी। जैसे-जैसे मैं कैंपस के अंदर जा रही थी मानो बचपन की यादें आंखों में तैरती जा रही थी। एक-एक कोना एक-एक जगह से हमारी कितनी यादें  जुड़ी थी। यहां की हरियाली, पेड़, खेत, फूलों की क्यारियां एक अलग रोमांच  जगा जाती है। ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की शाखाएं मानो आसमान को छुती नजर आती है। इस कैंपस में हमें सब कुछ मिला था वह अपनापन जो अपनों में मिलता है, वह चिंता, वो फिक्र जो केवल अपनों को रहती है वो कैंपस के हर सदस्यों को एक दूसरे की रहती थी मानो एक परिवार हो।भीड़-भाड़ से दूर बच्चों को यहां आकर मनमोहन ,सुसज्जित,आनंद और शानदार अनुभव मिला। सालों बाद यहां आकर यह अनुभव पाना बेहतर लगा था। आधुनिक समय में थोड़ा बदलाव महसूस हुआ नवीन तकनीक नजर आई और हरियाली थोड़ी कम दिखी। बगीचे कम हो गए थे लेकिन सुंदरता आज भी कायम थी। इस वातावरण में बच्चों के साथ एक अलग आनंद मिल रहा था। बच्चों ने खूब मजे लेकर मेरे बचपन के किस्से सुनकर हर उस जगह को देख रहे थे और मजे ले रहे थे। मेरे लिए एक सुकून वाला पल था बच्चे यहां आकर आनंदित थे। सादगी से भरा यह जगह अनुपम सौंदर्य का खजाना रहा है। दो दिन की थकान यहां आकर उड़ चुकी थी और चेहरे पर मुस्कान और शरीर में ताजगी आ चुकी थी।

एक बार फिर सबौर जाने का सोच रही जल्द है फिर पुरानी यादें ताजा करने कॉलेज कैंपस जाना चाहूंगी। समय बदला लोग बदले नहीं बदला तो यह कॉलेज का अपनापन, सुंदरता ,भव्यता जो अपने आप में अनूठा था.. है... और रहेगा। यूं ही नहीं कहती मैं "हार्ट आफ सबौर"। दूर से लाल रंग में रंगा यह कॉलेज हरियाली से घिराआपके दिलों में बस जाएगा। मेरे दिलों में तो हमेशा एक खास जगह है और रहेगी । बहुत जल्द मिलती हूँ वापस "हार्ट ऑफ सबौर " बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज से जो दिलों में सदा है ...और रहेगा। बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज सबौर मेरे मानस पटल पर कुंडली जमाएं आज भी बैठा है। बचपन से लेकर शादी तक का सफर का साथी जो रहा है। हर एक चित्र आज भी मेरे मन और आंखों में रचा बसा है। हर तरफ हरियाली ही हरियाली, पक्षियों का शोर कहीं कुत्ते, बिल्ली को खेलते देखना हमारी दिनचर्या का हिस्सा रहा करते थे।

 प्रकृति की सुंदरता में डूब कर जीवन के कुछ पन्नों को हमने एक अनूठे अनुभव के साथ यहां बिताया। मैं जब भी सबौर आती हूँ इस कॉलेज में आने का प्रलोभन मन देता रहता है। इस कैंपस में बीते हर पल हमारे जेहन में सदा के लिए बसे रहेंगे।

- निक्की शर्मा रश्मि, मुम्बई, महाराष्ट्र   Niktooon@gmail.com