ग़ज़ल - विनोद निराश

 

अगरचे तूने भूलाना सीख लिया,

मैंने तुझे आजमाना सीख लिया।

 

बेशक बढाया कर फाँसले मुझसे,

मैंने फाँसले मिटाना सीख लिया।

बंदिशे-ज़माना क्या रोकेगी मुझे,

बंदिशों को हटाना सीख लिया।

वो वफ़ा करें या करें हमसे जफ़ा,

अब जीना शायराना सीख लिया।

बारहा धोखा दिया तुमने मगर,

अब खुद को मनाना सीख लिया।

अल्हैदा क्या हुए तुमसे निराश,

रिश्ता भी निभाना सीख लिया।

- विनोद निराश , देहरादून