ग़ज़ल - सम्पदा ठाकुर

 

दोस्ती कुछ ऐसा यार कर बैठे ,

दिल अपना उस पर हार कर बैठे

तन्हाई में भी थी खुशहाल मैं,

खामखा दिल बीमार कर बैठे

बात बिगड़ जाएगी मालूम नही ,

दिल थाम कर एतबार कर बैठे

जूँम्बिश हुआ जब इश्क का,

जो मेरा ही शिकार कर बैठे

अपनी जहां को भूलाकर मैं,

तुमसे प्यार का इजहार कर बैठे

||

अगर दूर हो नजरों से तो क्या?

हम तो ख्वाब में दीदार कर बैठे

इक एहसास को लिखती संपदा,

तेरे लिए तो ही ये श्रृंगार कर बैठे

- सम्पदा ठाकुर,  जमशेदपुर