ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 

दिल मे तिरछा सा बस गया कैसे,

मन मे कान्हा समा गया कैसे।

आरजू दिल की तू जता कैसे,

पालूं दर्शन तेरे बता कैसे।

रात दिन सोचती है ख्यालों में,

श्याम का रंग चढ गया कैसे'।

नूर आँखो मे श्याम चमका है,

अब हकीकत कहे बता कैसे।

प्यार का काइदा जरा समझो,

दूर राधा हुई मिला कैसे।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़