ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 

कैसे सहेगे दर्द को लगे इम्तिहान है,

होने  लगी मुझे  गम से थकान है।

करते रहे थे मेहनते हम रात दिन बडें,

हमको नही मिला था सकूँ दिल हल्कान है।

रूठे हो यार तुमको मनाना बहुत हुआ,

लगता ही आज फासलें भी दरमियान है।

नाराज हो गये हैं बिन बात के सनम,

लगता है आज यार हुआ बेजुबान है।

धोखा दिया है आपने*ऋतु  को बिना कहे,

छोड़ो ये आज बातें कि अब क्या निदान है।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़