ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jul 27, 2024, 23:13 IST
दर्द दे माँ अब किसी को अकसर नही देखा,
माँ चुभा दे दिल मे कोई नश्तर नही देखा।
खूब उँचा तुम उड़ो रखती सदा ये कामना,
हो बुरा तेरा कभी, माँ. बोलकर नही देखा।
तुम सदा हँसते रहो,भगवान से है प्रार्थना,
जिंदगी हँसते ही गुजरे,माँ सा रहबर नही देखा।
सिलसिला खुशियो का यारा अब रूकेगा नही,
दिन कटेगा दर्द से माँ को जताकर नही देखा।।
लोग जीते है बिछुडकर और रिश्तों मे भले,
लेकिन अपनी माँ से बिछुडकर नही देखा।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़