ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 

दर्द अपना यार भूले हैं कभी,

दर्द दिल का यार रीते हैं कभी।

नींद मे रहते अकेले हैं कभी,

कर बहानें वो सताते हैं कभी।

उल्फतो के जाल मे फँसते रहे,

प्यार को क्या दिल से जीते हैं कभी।

प्यार हरदम वो बड़ा करता तुम्हें,

पास आकर कब बताते हैं कभी।

अब कहाँ पूरी हुई हैं ख्वाहिशें,

लग जुबाँ पर आज तालें हैं कभी।

दर्द सहना यार भाता क्यूँ नही।

दर्द मे दिल अब पुकारे हैं कभी।

चाँदनी को चाँद से मिलना अगर,

चाँद को धरती पे लाते है कभी।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़