ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jun 3, 2024, 22:40 IST
जी रही थी जिंदगी को मैं पठानी की तरह,
जख्म को आज सम्भाली हूँ निशानी की तरह।
दर्द तेरा न सहा आज रूलाता है हमें,
आज बहता है मिरी आँख में पानी की तरह।
खूबसूरत सा लगे इश्क तिरा अब मुझकों,
यार लगता है मुझे आज कहानी की तरह।
प्यार के दीप जलाकर वो दिखाने आये,
भर के चाहत से सजे दीप दिवानी की तरह।
हाय क्यो सैंध लगाते है दिलो के रिश्ते मे,
इश्क लगता है मुझे तल्ख बयानी की तरह।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़