ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Updated: May 3, 2024, 23:25 IST
काश मुझ को नशा नही होता,
दिल से शायद जुदा नही होता।
ददुश्मनो से डरा नही होता
सर मेरा भी झुका नही होता।
इश्क तेरा हमे रुलाता है,
हाय तुमसे मिला नही होता।
मौत से कब डरा सिपाही भी,
फर्ज से कुछ बड़ा नही होता।
यार कर ले नमन शहीदों को,
देश से अब दगा नही होता।
सोचकर दोस्ती जरा करना,
आजकल सब खरा नही होता।
कद्र करना सदा मुहब्बत की,
दर्द देना भला नही होता।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़