गजल - मधु शुक्ला
Jun 13, 2024, 23:11 IST
आराध्य तुम्हें अपना स्वीकार किया मैंने,
डर छोड़ जमाने का इज़हार किया मैंने।
हर वक्त नयन मेरे नजदीक तुम्हें चाहें,
बैचैन निगाहों का उपचार किया मैंने।
कैसे कब दिल मेरा तेरे दर आ बैठा ,
यह ज्ञात नहीं लेकिन आभार किया मैंने।
मन जब मुझ से पूछा क्या और तमन्ना है,
उसका हर मंसूबा बेजार किया मैंने।
बेदाग मुहब्बत से रोशन यह जीवन हो ,
'मधु' स्वप्न महल ऐसा तैयार किया मैंने।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश